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‘साक्षी योग’ योग की एक उम्दा विधा है जो व्यक्ति को तनावमुक्त करके जीवन को सहज बनाती है । पर अपने ‘साक्षी’ और ‘योगी’ केंद्र सरकार को बुरे दिनों की खबरों के बीच तनावमुक्त व सहज करते है । अब आज अचानक संसद में चल रही उठा पटक के बीच साक्षी व योगी क्यों याद आ गए ? दरअसल आज खबरों के मायाजाल में नजर एक अत्यंत छोटी खबर पे जा के टिक गई । 23 पाकिस्तानी हिन्दुओं को गुजरात पुलिस गिरफ्तार करके हरिद्वार ले आई और उन्हें पाकिस्तान वापस भेजने की तैयारी में है ।
सन् 1947 में हुए बटवारे की अगर सबसे ज्यादा किसी ने कीमत चुकाई है तो वो है पाकिस्तान में रह रहे हिन्दू और सिख । भारत सरकार ने इनको ये सोच कर इनके हालात पर छोड़ दिया कि जैसा व्यवहार मुसलमानों के साथ भारत में होता है वैसा ही कुछ इनके साथ भी पाकिस्तान में होगा । पर पाकिस्तान तो पाकिस्तान है उसका तो जन्म ही पृथक इस्लामिक विचारधारा से हुआ है तो वो भला कैसे किसी दूसरे धर्म के प्रति सहिष्णु हो सकता है । अतः इन बेचारों के हालात ‘ना घर के रहे ना घाट के ।’ अब कोई यूँ ही तो नहीं अपना घर-बार काम-धंधा सब छोड़ के जान हथेली पे ले के भारत पाक सीमा पार करने की कोशिश करेगा । निश्चित ही जीवन जब मौत से बद्तर बन जाता है तब ही कोई ऐसी हाराकीरी का प्रयास करेगा । एक अंतिम आस उन्हें यहाँ खींच लाई होगी कि शायद यहाँ उन्हें हिन्दू हिन्दू की रट लगाये सरकार के नुमाइन्दों कुछ सहानुभूति मिले । नहीं कोई तो कम से कम साक्षी योगी तो उनकी सुनेगें ही । पर यहाँ आ के उन्हें अहसास हुआ होगा कि इनकी कट्टरता तो सिर्फ मुस्लिमों को चिढ़ाने तक ही सीमित है । इनसे तो लाख अच्छे वो ‘सो कॉल्ड सेक्युलरिस्ट’ हैं जो रातों रात करोड़ो बांग्लादेशियों को भारतीय बना देते हैं ।
क्या इनके लिये हमारे दिल या देश में कोई जगह नहीं ?
अभी कुछ महीने पहले ही जब पाकिस्तान से आये कुछ सिख व हिंदुओं ने वापस जाने से इंकार कर दिया था तब सरकार ने इन्हें अस्थायी वीजा उपलब्ध कराया था तो इन 23 लोंगों ने क्या बिगाड़ा है ? जब हम सब जानते बूझते करोडो बांग्लादेशियों को अपने यहाँ बसा लेते है पाकिस्तान से आये सैकड़ों आतंकियों को कश्मीर में घुसा लेते तो कुछ सौ लोंगो से कौन सी हमारी जनसंख्या का सन्तुलन बिगड़ जा रहा है । पाकिस्तान को तो वैसे भी इनकी कोई जरूरत है नहीं तो क्या भारत सरकार इन्हें सिर्फ पाकिस्तान का असली चेहरा उजागर करने के उद्देश्य से उन्हें वापस भेजना चाहती है ? पाकिस्तान से आये कलाकारों और पूर्व क्रिकेटरों को हम अपने यहाँ समायोजित कर लेते हैं तो इन्हें क्यों नहीं ।
भारत एक बड़ा और सम्वेदनशील देश है इसे कम से कम अपनी छवि का ख्याल करते हुए इन 68 वर्षों से वंचित लोंगो को विकास का उचित महल उपलब्ध कराना चाहिये ।
अस्थायी वीजा इनकी समस्याओं का स्थायी हल नहीं है ।
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